مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
متى تَدْعُهُم |
جُمّ |
٩٦١ |
يا ليت أني |
أَجَمْ |
٥٨٠٣ |
يزيد يغضُّ |
المحاجمُ |
٢٨٧٥ |
جزى اللهُ فيها |
المتضاجم |
٣٩٢٧ ، ٨٥١ |
لنا من بني |
الأعاجم |
٧١٦ ، ٤٣٨٣ |
ولا يسرق الكلب |
الجَمَاجِمَ |
٦١٧٩ |
لعمرك ما كرد |
فاعتجم |
٥٧٩٦ |
ينجِّمها قوم |
مِحْجم |
٦٥٠٨ |
كانت فريضة |
الرَّجم |
٢٨٥٠ |
بِحَيٍّ إذا |
المُرَجَّمِ |
٩٤٢ |
وما الحربُ إلا |
المُرجَّمِ |
٢٤٣٩ |
أرقت لهمٍّ |
السَّجْم |
٤٨٣٠ |
تذكرت شجواً |
السَّجْمِ |
٢٩٨٤ |
فأثار فارطُهم |
العُجمِ |
٤٨٧٦ |
وألزفتُ طاعته |
عجم |
٧١٦ |
ومَكْن الضباب |
العجم |
٦٣٥٥ |
ماذا وقوفي |
مستعجم |
٥٢٥ ، ١٩٠٥ |
كالكرّ في كف |
النجم |
٥٧٠٧ |
خَلَفَ النَّاسَ ... |
الرَّحِمْ |
١٢٢ |
وكيف بظلمِ |
والرُّحمُ |
٢٤٤٤ |
ومن ضريبتهِ ... |
والرُّحمُ |
٢٤٤٧ |
يمدُّه آذيُّ |
الأسحم |
٤٧٣٥ |
لا دعمَ بي |
الشحمُ |
٢٠٩٥ |
وما أنتم إلا |
الطُّحْم |
٤٠٧٩ |
أصخر بن عبد الله |
لِمُفْحَمِ |
٥١١١ |
كان الكمى |
ملْحِمُ |
٦٤٣٣ |
عجبت لحيِّ |
وتُرْخُمِ |
١٣٨٧ |
تنبذ أفلاءها |
والرَّخَمُ |
٦٤٨٠ |