مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
وأسمرُ خطيُّ |
هُذارم |
٥٤٧٩ |
وإلا فبزِّي لامه |
صارم |
٦٨١ |
وحسان ذو |
الخضارم |
١٨٣١ |
ولا نقتل الأسرى |
المغارمِ |
٢٠٧١ |
عَجِبَتْ مَيَّةُ |
ثَرَم |
٨٣٥ |
فإن تك |
جَرْمِ |
٧١٧٩ |
فشَككُتُ بالرُّمْحِ |
بِمُجَرَّمِ |
٩٠٣ |
ونضرة الأزد |
الحرم |
٣٤٢٤ |
يا شدة ما |
الحرم |
٣٣٤٠ |
وإنْ أتاهُ |
ولا حرم |
١٦٧٧ |
تركن القَنانَ |
ومُحرمِ |
١٢٩٥ |
جَعَلْن القنان |
ومُحرمِ |
١٤١٥ |
مُوَكَّلٌ بِشُدوف |
زَرِم |
٣٨٥٠ |
وهلا وقد |
مُشَرِّم |
٣٤٤٧ |
قد كان |
بالصُّرْمِ |
٣٧١٢ |
جمِّ الصواهل |
والصِّرَمِ |
٣٧١٣ |
لا تراني والغاً |
الضَّرمْ |
٣٩٥٧ |
إذا جاهدته |
المضرّم |
١٤٨٢ |
أبا معقل |
العُرْم |
٤٤٥١ |
المعتري ضوء |
بالعرم |
٤٤٥٩ |
وإن مُقْرَمٍ |
مُقْرَمِ |
٢٢٥٩ |
أزهير هل |
متكرّم |
٤٦٩١ |
ومستعجبٍ مما يرى |
لم يترمرمِ |
٢٣٦٩ |
ترى الأرض |
عرمرم |
٤٥٩٧ |
وخَفِّض عليك |
العرمرم |
١٨٦٩ ، ٤٠٧٤ |
فإن سمعتم |
الهرِمُ |
٥٧٢٧ |
ووَطِئْتنا وطئاً |
الهَرْمِ |
٧٢٠٩ |
أفي الطَّوفِ |
لم يرَمْ |
٢٧٠٩ |