عمّ الأكوان ندى وجدا |
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فعلا الآفاق شموس هدى (١) |
ورياض الجود تصدّ صدى |
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ولها أرج محي أبدا (٢) |
فاقصد محيا ذاك الأرج (٣) |
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لله نسيم حيا أحيا |
ومسير طريق ما أعيا (٤) |
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فالزمه ، فربّتما أغيا |
ولربّتما فاض المحيا (٥) |
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ببحور الموج من اللّجج (٦) |
ذو العقل يقوم بسيّده |
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ومسدّده ومؤيّده (٧) |
ومصرّفه ومردّده |
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والخلق جميعا في يده |
فذوو سعة وذوو حرج (٨) |
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ونزاعهم ونزوعهم |
وقناعتهم وقنوعهم |
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وسلوّهم وولوعهم |
ونزولهم وطلوعهم |
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فإلى درك وعلى درج (٩) |
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(١) الجدا : العطاء.
(٢) الأرج : الرائحة الطيبة.
(٣) المحيا : المكان الذي يحيا فيه.
(٤) الحيا : المطر والخصب.
(٥) فاض المحيا : كثر ماؤه. والمراد خيره.
(٦) اللّجج : جمع لجّة وهي معظم الماء.
(٧) في ت : يقوم لسيّده.
(٨) ذوو حرج : ذوو ضيق ، من قولهم : حرج عليه أي ضيق عليه.
(٩) في ت : وإلى حرج. الدرك : أسفل كل شيء. درج : درجات للصعود.