فإن الحوادث أودى بها |
ابن جني |
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(٣) ٢٤ |
فأنت الذي صيرتهم حسدا |
المتنبي |
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(٤) ٢٥١ |
فأنت طلاق والطلاق ألية |
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(١٢) ٢٦٤ |
فحزن كل أخي حزن أخو الغضب |
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(٨) ١٩٧ ، (١٣) ٩١ |
فخير كما لشركما فداء |
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(١) ٣٤٧ |
فرغت إلى العبد المقيد في الحجل |
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(١٤) ١١١ |
فشركما لخير كما الفداء |
حسان بن ثابت |
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(١١) ٩ |
فعاند من تطيق له عناد |
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(٦) ١١٣ |
فغبرت بعدهم بعيش ناصب |
الهذلي |
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(٤) ٤٠٩ |
فقلت وأنكرت الوجوه : هم هم |
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(٤) ١٨٨ |
فلا حزن يدوم ولا سرور |
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(٦) ١٣٩ |
فلما أجزنا ساحة الحي وانتحى |
امرؤ القيس |
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(١٢) ١٢٦ |
فما للنوى جذ النوى قطع النوى |
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(٢) ٦٠ |
في لجة أمسك فلان عن فل |
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(١٠) ١٤ |
فيا عجبا حتى كليب تسبني |
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(٩) ٢٦١ |
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باب القاف |
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قالوا تحبها قلت بهرا |
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(١٣) ٧٢ |
قالوا الفراق فقلت موعده غد |
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(٨) ٥٣١ |
قد استوى بشر على العراق |
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(٨) ٤٧١ |
قد عض أعناقهم جلد الجواميس |
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(١١) ٢٩٩ |
قد جدت الحرب بكم فجدوا |
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(١٣) ٢٢٤ |
قدني من نصر الخبيبين قدي |
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(٧) ٣١٨ |
قلت هجدنا فقال طال السرى |
لبيد |
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(٨) ١٣٢ |
قومي هم قتلوا أميم أخي |
المرزوقي |
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(٩) ٢٧٤ |
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باب الكاف |
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كأن سلافه مزجت بنحس |
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(١٢) ٣٦٥ |
كان منا بحيث يعكي الإزار |
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(٧) ٣١٣ |
كأنما في جوفه تنور |
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(١٥) ٤٦٢ |
كأنه مضطغن صبيا |
الأحمر |
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(١٣) ٢٣٠ |
كأنها ثمل تمشي على ورد |
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(١٥) ٣١٢ |
كأنهما ملآن لم يتغيرا |
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(١) ٢٩١ |
كذا فليجل الخطب وليفدح الأمر |
أبو تمام |
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(١) ٣٦٠ |
كروبية منهم ركوع وسجد |
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(١٢) ٣٠٠ |
كفى بالإسلام للمرء ناهيا |
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(١٢) ٤٨ |
كل شيء دون المنية سهل |
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(١٠) ١٧٩ |
كلما سجدت نصرانة لم تحنف |
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(١) ٢٧٩ |