لهفي على قتلى
أبيح بهم |
|
حمى الدين
المصون |
ما فيهم إلا
صريعٌ |
|
بالصوارم أو
طعين |
غدر الخؤون بهم
هناك |
|
ولم يف الثقة
الامين |
وخلت ديارهم ،
كما يخلو |
|
من الاسد العرين |
فعفا الصفا من
بعدهم |
|
وبكاد لفقدهم
الحزون |
والركن صدّعه
لعظم |
|
مصابهم داءٌ
دفين |
والقبر منذ
الفتك فيهم |
|
ما لساكنه سكون |
يا عاذلي رفقا
فانك |
|
فيهم عندي ظنين |
كم ذا تهوّن من
جليل |
|
مصابهم ما لا
يهون |
فارفض عداهم ان
غدوت |
|
بدين جدهم تدين |
ان البراء من
الا عادي |
|
للولاء لهم قرين |
يا بقعة ( بالطف
) حشو |
|
ترابها دنيا
ودين |
* * *
أضحت كأصداف
يصادف |
|
ضمنها الدرّ
الثمين |
مني السلام عليك
ما |
|
غطّت على الشمس
الدجون |
ولي الحنين اليك
مهما |
|
اختصّ بالابل
الحنين |