مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
فآبوا بألفي كاعب |
النَواهش |
٤٩٥ ، ٦٧٧٧ |
لو لا هباشات |
العُشُوش |
٦٨٥٤ |
وما نجا من حَشْرها |
الطموشِ |
١٤٥٧ ، ٤١٥٣ |
حارث ما |
بالطشيش |
٤٣٠٧ |
حرف الصاد
قد كنت خرَّاجاً |
لحاصِ |
١٦٤٠ ، ٦٠٢٦ |
ليصبحنَّ العاص |
العاص |
١٥٣١ |
وجوه ناظراتٌ |
بالخلاصِ |
٦٦٥٤ |
ليصبحنَّ العاص |
الدلّاص |
٤٦٧١ |
مستحقبين |
الدلاص |
١٥٣١ |
توصَّلُ منها |
العصاعص |
٤٣٠٢ |
رعى الشبرقَ |
المخامِصُ |
٣٩٥١ |
إنك ذو |
اللَّمُوص |
٦١١٠ |
تَفنق بالعراق |
الخبيص |
١٧٠٢ ، ٥٢٦٥ |
يا ليتَ شِعري .... |
أصَيصْ |
١٣٣ |
جَنَيْتُهُ من |
القصيصِ |
١٠٤٦ |
جاءَ الشتاءُ |
القراميص |
٢٣٧٥ ، ٥٤٤٩ |
كلوا في نصف |
خميص |
١٩٢٢ ، ٣١٨٩ |
أأطعمْتَ العراق |
القميص |
٢٥٧١ |
ويأْكُلن من قوٍّ |
نميصُ |
٦٧٥٨ |
حرف الضاد
قل للغواني |
إمحاضُ |
٦٢٣٩ |
وأراني المليك |
اعتراض |
٤٥٠٤ |
من يَرُمْ جمعهم |
الأحراضِ |
١٣٩٠ |
سوف تدنيك |
الكِراضِ |
٥٨٠٥ |
ولو أَشْرفَت من |
خَضاضُ |
١٦٧٣ |