مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
إذا بات |
خاشعُ |
٧٠٨٧ |
لما أتى خبر |
الخشع |
٣١١٤ |
فنكرنه فنفرن |
جُرشُعُ |
٦٢٨٢ |
تأبى بدرَّتها إذا |
يتبصَّعُ |
٥٤٥ |
ترى جيفَ |
المرصَّعُ |
٣٨٠٢ |
يا ليتني فيها |
وأضع |
٢٤٢١ ، ٧٢٠٠ |
فلم تستطع |
خواضعِ |
٧٠٠٨ |
تأبى بدرتها |
يتبضَّعُ |
١٢٧٤ |
إني رأيت |
فترضعُ |
٢٥٢٨ |
فرجعتهم شتى |
مُرضعُ |
٦٢٧٣ |
وتجلَّدي للشامتين |
لا أتضعضعُ |
٣٩٠٨ |
وكنتم كعظمِ |
يوضعُ |
٢٦٩٣ |
أتاك بقولٍ |
ساطعُ |
٦٨٣٦ |
وما المرء إلا |
ساطع |
١٦٢٧ |
وقد يحمل |
قاطع |
٣٩٩١ |
وجُدَّتْ على |
تَقَاطُعِ |
٩٥٦ |
حرّة تجلو |
سَطَعْ |
٣٣٣١ |
ونميمةٍ من قانصٍ |
وأقطع |
٠٩٩ ، ٥٥٤٠ ، ٦٤٤٥ |
وقد كنْتُ |
تَقَطَّعُ |
٢٥٥ |
تحدَّر دمع العين |
متقطَّعُ |
٥٤٠٠ |
حتى إذا |
يتقطعُ |
١٢٤٦ |
أبيضُ كالملحِ |
يَقْطَعُ |
٢٦٤٣ |
تعبَّدني نمرُ |
ومُهطِعُ |
٦٩٥١ |
بمصطحباتٍ من ... |
تُدَافُعُ |
١٢٩ ، ٣٣٦٧ |
بمصطحباتٍ من لصافٍ |
تدافعُ |
٢١٢٣ |
وما الناس إلا |
رافعُ |
٧٢١ |
أتاك امرؤ |
شافع |
٣٥٠٦ |
عفا حُسَمٌ |
الدوافعُ |
١٤٣٨ |