مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
والمرء يُيْليه بلاء |
الأحوال |
٦١٦ ، ٦٢٧ |
وهل يَنْعَمَنْ |
أحوال |
٧٤٩ ، ٥٠٦٠ |
لا يغرَّنَّ امرءاً |
للزوالْ |
٦١٩٠ |
أشيخا كالوليد |
السؤال |
٣٦٤٥ |
في الأمر والنهي |
السؤال |
١٢١٦ |
قف بنا |
السُّؤالْ |
٢٣٢٢ ، ٥٥٦١ |
على حَتٍّ |
طوالِ |
١٢٤٥ ، ٢٨٤٠ |
كأن هويَّها |
طوال |
١٨٦٤ |
ولقدْ ربأتُ |
الأطوالِ |
٢٣٩٢ |
كانت لحمير |
أقوالِ |
٥٦٩٤ |
بِعِجْلِزَةٍ قد |
منوالِ |
٧٤٥ |
ولي دونكم |
جَيْأَلِ |
١٢٣٩ ، ٢٨٦٠ ، ٣٢٨٨ ، ٤٤٩٥ |
من سراة |
الحيال |
٤٢٧٧ |
ولقد شبتِ |
حيالِ |
٥٠١١ |
لمن طلل |
فالخيالُ |
١٩٧٢ |
أرجأت يقضَمْن |
السَّيال |
٢٦٤١ |
فلما تنازعنا |
ميّال |
٣٢١٠ |
ولما تنازعنا |
ميّال |
٦٥٦٨ |
أَلَسْتَ مُنْتَهياً ... |
الإِبِلُ |
١٧٣ |
وإذا حركتُ |
أَبَلْ |
١١٧٢ |
نطعنهم سُلكى |
تابل |
٣١٧٠ |
إذا وُرِّعَتْ |
وذابلِ |
٧١٤٠ |
سجوداً له |
وكابلُ |
٣٢٢٥ |
ستدرك ما تحمي |
بلابل |
٣٩٧ |
إليك وجَّهنا |
للإبل |
٤٨١٩ |
تدلى عليها بالحبال |
نابلِ |
٩٦٦ ، ٢١٥٠ ، ٦٤٦٢ |
نَطْعُنُهم سُلكى |
نابلِ |
١٨٨٤ |