مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
ما علَّتي |
عنابل |
٤٣٤١ |
بماء شنانٍ |
وابل |
٣٣٢٨ |
لمن طللٌ |
ووابل |
٥٥٤٧ |
أأن رأت رجلاً |
تَبِلُ |
٧١٤ |
وحَاجِبٌ مَحرْدَسَهُ |
جِبْلِ |
٩٧٥ |
يصبح في |
الجبلْ |
٢٨٥٢ |
مكللٌ بأصول |
حُبُلُ |
١٣١٧ |
أَأَنَّ رَأَتْ |
خَبِلُ |
١٦٩٦ |
ترى العَبَسَ |
ذبل |
٤٣٢٩ |
ترى العبس |
ولا ذَبْلِ |
٢٢٤١ |
هم سقوني |
وذَبَل |
٢٢٣٥ |
تظلُّ نسور |
يذبل |
٤٦٩٨ |
علاقَطَنا |
فيذْبُلِ |
٥٥٤١ |
كذا ثمانون |
السبل |
١٩٨٢ |
راسخُ الدمنِ |
وسبلْ |
١٥٥ ، ٢٩٤٠ ، ٤٥٨٩ |
لا رُمَّحييَّن إذا |
كالأشبل |
٢٨٣٦ |
نصبتُ له وجهي |
المرعبل |
٢٥٥٣ |
خشية الله |
بقَبلْ |
٥٣٤٦ |
لا يُحفلون عن المُضاف |
المقبل |
٤٨٧٧ |
كلَّ يومٍ |
نَبَلْ |
٢٣٦٤ |
لما رأت |
حَنْبَلِ |
١١٢٨ |
ممن حملن |
مهبّل |
٦٨٥٣ |
فأضحى يُسحّ |
الكَنَهبُلِ |
٩٢٥ ، ٥٢٨٧ ، ٥٧٢٣ |
وأضحى يَسحُّ |
الكنهبل |
٢١٨٥ ، ٥٩١٩ |
أنا الجواد |
وبَلْ |
٧٠٤٧ |
هو الجوادُ |
وبلْ |
٢٢١٦ |
أفيقوا فلست |
بالموبل |
٧٠٤٤ |
فأبَّل واسترخَتْ |
يُؤبَّلِ |
٢٤٦٢ |