مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
وأصغر كالدنيا |
فمحول |
٢٢٧ |
وأصفر كالدينار |
فمحولُ |
٣١٩٩ |
وخَالفَ المجدَ |
مَدْخول |
٢٦٨٣ |
فأدْبَرن كالجزع |
مُخْوِل |
١٩٥٥ ، ٤٣١٣ |
كالسُّحُلِ البيض |
الأسَوْلِ |
٥٦٧ ، ٢٩٩٥ ، ٣٢٧٦ ، ٦٤٩٨ |
لقدْ كذبَ |
برسولِ |
٢٤٩٩ |
إني امرؤ |
والرسول |
٥٩٣٩ |
تَقريبُهُ المرطى |
مغسولُ |
٢٩٤٢ |
ولا وأبيك |
كسول |
٢٨٣٧ |
وحمير جَدُّنا |
أصول |
٣٥٦٥ |
وكذاك حمير |
أصول |
٤٤٧٥ |
وكم من كَمِيٍّ |
وَصُولِ |
١٠٠٢ |
لك المرباع |
والفضول |
٣٨٠ ، ٣٧٦٨ ، ٦٥٩٩ |
إني وإن قلَّ |
طُوْلُ |
٦٦٦٧ |
فَلِجُوا المسجِدَ |
الطُّوَلْ |
٨٩٤ |
إن الذي |
وأطول |
٤٢٨٥ |
فما بلغت |
أطولُ |
٥٧٤٠ |
إن الذي |
وأطول |
٣٢٠٧ ، ٥٧٣٩ |
فَلجُوا المسجدَ |
والطّولْ |
٤١٧٩ |
إذا مات |
فعول |
٥٦٧٢ |
أخرجت منها |
كالمِعْول |
٣١٥٣ |
وما هَجرُ ليلى |
شُغولُ |
١٤٧٥ |
أخرجتُ منها |
كالمِغْوَل |
٥٠٢٧ |
وأسْمُو للعلى |
أقول |
٧١٢٠ |
دعوت الله |
ما أقول |
٣٢٠٩ |
وقد أعددت |
العقول |
٤٦٤٣ |
شَرِبتُ الإِثْمَ ... |
بالعُقُولِ |
١٧٤ |