مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
أقامتْ به |
نهر |
٦٧٦٧ |
سدَّ الرهاء |
النهر |
١٢٠٧ |
لها منخرٌ كوجارِ |
تبنهرْ |
٢٦٨٤ |
والكل منهم |
الجوهرُ |
٢٧٠٢ |
خالق الناس |
يهر |
١٩٠٧ ، ٥٨٧٥ |
أسود شرى |
الأساور |
٣٤٢٠ |
هم منعوها |
التغاور |
١٥٧٨ |
يا رسول المليك |
بُور |
٦٥٦ |
وأخو الحضر |
والخابورُ |
١٤٨١ |
أين كسرى |
سابورُ |
٥٨٣٠ |
يا قومنا لا تروموا |
مَثْبُورُ |
٨١٢ |
ثُمَّ بَعْدَ الفلاحِ |
القُبُورُ |
١٢١ |
والله لو لا رهبةُ |
التَّرْتُورِ |
٧٠٦ |
يا ربَّ ربَّ |
جُؤَر |
١٢٣٨ |
حتى دعونا بأرحام |
لحاجورُ |
١٣٤٦ |
فبتُّ مرتفقاً |
مَحْجورُ |
٢٥٨٦ |
في شعشعان |
الحُنْجور |
٦٢٤٥ |
فكَعكَعوهن في |
ومهجورِ |
٦٨٧٩ |
فظل يرشح |
الحَوَر |
١٦١٥ |
واستعجَلوا خفيف |
حُوْر |
١٦١١ |
يا قصباً هبتْ |
خُورُ |
١٩٤٥ |
فليْتَ لنا مكانَ |
تخورُ |
٢٥٥٨ |
فإن تك من |
فخورُ |
١٦٨٥ |
بل أنت |
والخَورُ |
١٩٤٦ |
تحت حجاجي |
يَمْخُور |
٣٣٣٨ |
وصَدري مُصفح |
الصدورُ |
٣٧٦٥ |
نُغالي اللحمَ |
القدورُ |
٢٤٦٠ ، ٤٩٩٧ |
غمز بن |
المعذور |
٤٤٣٨ |