مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
قد أَعْجلَ |
مذكورِ |
٧٠٩٩ |
وبنو الأصفرِ |
مذكورُ |
٣٧٦٤ |
شاده مرمراً |
وكور |
٣٦٠٥ |
تمنى نئيشاً |
أمورُ |
٦٨١٨ |
وهو الإمامُ |
الدهورِ |
٦٦١٥ |
ومن العجائب |
بالقُهورِ |
٦٦١٥ |
ترى شرط |
مهور |
٣٤١٨ |
على أصلَابِ |
إيرُ |
٣٦٦ |
وإن التي |
الجبائر |
٦٢٧٨ |
قَتَلتَّهُمُ بَغْياً |
الكبائرِ |
١٦٧٠ |
وليس الفتى |
الجَرَائِرُ |
٩٤٩ |
أبرقْ وأرعدْ |
بضائر |
٥٠٣ ، ٢٥٤٥ |
إذ قيل |
طائرْ |
٢٤٥٦ |
غداة هَزَمْنَا |
طائر |
٧٥١ |
فإن وراء الهُضب |
والغفائرُ |
٤٩٧٤ |
وشعب عظيم |
العمائر |
٣٤٧٣ |
أنشأتَ تنطقُ |
الدوائرْ |
٢٤٥٦ |
أراني قد |
للكبير |
٤٧٦٨ |
والنيبُ إن |
أَثَّئرُ |
٢٣٤٠ |
وقَالُوا ما تَشَاءُ |
أَثِيرِ |
١٧٨ |
مُدورٍ تدويرَ |
الدعاثيرْ |
٢١٠٠ |
رفعت لها طَرْفي |
كثير |
٤٢٦ |
وأن أسأل المرء |
كثير |
٥٧١ |
ولو أن نفسي |
كثيرُ |
١٥٠٨ |
زرت امرأً |
خير |
١٩٦٦ |
بنطفة بارقٍ |
شخير |
٣٣٩٨ |
إن الذي أغناك |
بالخير |
١٢٢٩ |
كأنَّ الجَدْيَ |
يَسْتَدِيرُ |
١٠٠٨ |