مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
وإذا سكِرت |
والسَّديرِ |
٣٠٣١ |
كأنا غُدْوة |
مدير |
٤٧٧٨ |
سبائباً |
الحريرِ |
٢٣٥٦ |
كأنّ دجاجهُ |
الحرير |
٣٠٤٤ |
ونسجت لوامعُ |
الحرير |
١٢٧٠ |
صببْتُ الماءَ |
صريرُ |
٦٥٠١ |
ويعجبك الطَّريْرُ |
الطَّريْرُ |
٤٠٤٥ |
من يكن في |
زير |
٢٨٨٢ ، ٣٢٦٨ |
شِمالُكَ تَفْضُل |
الغزير |
٥٢٠٧ |
ترى الرجل |
مزير |
٦٢٨٧ |
تذكّر هداك الله |
عسيرُ |
٥٣٩٩ |
وقارفَتْ وهي |
سِفْسِير |
٦٤٤٣ |
وحبيٍّ بعد الهدوء |
الكسير |
١٣١٧ |
كلُّ خطبٍ |
يَسيرُ |
١٦٧٧ |
واذكرُ غُدانة |
الصِّيرُ |
١٣٢٠ |
وحتى سمعنا |
متقاصير |
٦٩٠١ |
بآنسةِ الحديثِ |
العصيرِ |
٢٥٢٢ |
فإن أكُ |
القَصِير |
٢٢٩٨ |
فارعوى قلبُه |
يصير |
٢٥٥٢ |
ويسودُها أهلُ |
نُضَيرِ |
٦٦١٥ |
إذا ما مشت |
المطيَّرُ |
٣٤٠٧ ، ٤٢٠٩ ، ٦٥٣٨ |
لنا يوم |
وما نطيرُ |
٥٨٠٧ |
عشية ودَّ |
فيطيرُ |
٥٣٩٩ |
إن أك سكيراً |
البعيرْ |
٧٢٢٦ |
وإني لأستحي من |
بعير |
٥٧١ |
وإذا صحوت |
والبعيرِ |
٣٠٣١ |
قد قَتِلَتْ |
الشَّعيرِ |
٨٨١ |
الدهر أبلاني |
وما يتغير |
٢١٧٥ ، ٥٠٤٩ |