مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
يدني الحشيفَ |
لبّاسُ |
١٤٥٥ |
ليث هزبر |
وأعراسُ |
٦٩٣١ |
تا لله لا يعجز |
وفرّاس |
٥٤٨١ |
صعبُ البديهةِ |
هِرماسُ |
٦٩١٨ |
أحرقني الناس |
الناس |
١٤١٥ |
بينا كذلك |
الناسُ |
٦٩٨٣ |
في رأسِ شاهقةٍ |
قُرناسُ |
٥٤٤٧ |
ياميُّ إن ظباء |
والناسُ |
٤٢٢٧ |
تهددني كأنك |
نواسِ |
١٦٧٨ ، ٦٧٩٨ |
يا مروَ إنَّ |
لم يَيْأسِ |
٢٤٦٢ ، ٤٨٣٢ |
فلما دنت |
حُلابس |
١٥٥٣ |
وقالوا عليكَ |
خنابس |
١٩٣٥ |
عسعس حتى |
مقتبس |
٤٣٢٣ |
فما أبكي |
حبس |
٥٨٠٠ |
كأن جلود |
الحَبْسِ |
٩٦٩ |
وصحصحانٍ قذفٍ |
غسبس |
٣٦٣٧ |
ولكني جزعت |
عَبْسِ |
٥٨٠٠ |
أَجُدٌ إذا |
تنبس |
٤٣٢٠ |
بساعديه جَسَدٌ |
يُبَّسُ |
١٠٩٤ |
وكان لديَّ |
المنجِّسُ |
٦٥٠٨ |
في معدن الملك |
ولا مُنحسِّ |
١٣٠١ |
ونحن كصدع |
متشاخس |
٣٤٠٢ |
كأنها من بعد |
حدس |
١٣٦٦ |
ودع المدينة |
المقدس |
٤٨٣٢ |
هلم إليه قد |
تكدَّس |
٦٦٦ |
وادَّرِعي جلبابَ |
السندس |
٢٠٤٤ |
ثلاثين السنون |
المغارس |
٥٧٤٤ |
إلى ظُعُنٍ |
الفوارس |
٣٤٢٤ ، ٥٤٥٤ |