مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
رأى صاحبي |
القوامسِ |
٧٢٠١ |
خوى على |
خمسِ |
١٩٥٧ |
يثير ويبدي |
مُخْمس |
١٩٢٦ |
دفعت إلى |
شَمْسِ |
٥٢٩٦ |
ورثنا الملك |
شمس |
٣٥٣٤ |
العبدُ والهجينُ |
تَلَمَّسُ |
٥٢٥٢ |
ألقِ الصحيفة |
المتلمِّس |
٦١١٧ |
أودى الذي |
المتلمسُ |
٦١١٨ |
فهذا أوان |
المتلمس |
٦١١٧ |
أُسُودُ هَيْجَا .... |
هَمْسِ |
١٥٨ |
كما أتلعت |
الكوانسُ |
٦٤٥٦ |
طرفٌ أشمُ |
مكتنسُ |
٤٢٢٧ |
تقول هلال |
وقونس |
٣٣٣٣ |
وماءٍ هتكت |
اللعاوس |
٦٠٦٧ |
بقيت وفري |
عبوس |
٤٣٣٤ |
ومشدودةُ السَّكِّ |
عبوسِ |
٢٨٩٨ |
وقد ألاح |
مقبوسُ |
٦١٤٧ |
فلو شَاءَ |
سَدُوسِ |
٣٦٣ |
كأن بصدره |
عروس |
٤٣٤٤ |
لا بل |
عروسُ |
٢٠٥٥ |
فإن تسلم |
وعَروسُ |
٤٠٨١ |
آليتَ حبَّ |
السوس |
٣٢٥٥ ، ٧٠٤٣ |
خيلاً كأمثال |
شوسِ |
٣٠٨٥ ، ٣٥٨٥ |
سوى أن العتاق |
شُوْسُ |
١٤٤٦ |
إن لم أشنَّ |
نفوس |
٣٣٤٣ ، ٤٣٣٤ |
ويزينها في النحر |
وسُلُوس |
١٣١١ |
أَغرَّكِ أنني |
عَيْطَموسُ |
١٩٩٩ ، ٤٦٠٨ |
حيّوا الهِدملةَ |
مأنوس |
٦٨٩٣ |