مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
نرضيت آلاء الكميت |
بمباع |
٦٨٨ |
أبيت اللعن |
ولا يباع |
٣١٤٠ |
وكل عصارة |
متاعُ |
٦٢١٢ |
وما للمرء خير |
المتاع |
٣١١٨ |
مُغدَّاه مكرَّمةٌ |
ولا تُجاع |
٣١٤٠ |
من يَذُقِ |
بِجَعْجَاعِ |
٩٥٣ |
قد حصت البيضةُ |
تهجاع |
١٢٨٥ |
فقد أَصِلُ |
جُدَاع |
١٠١٤ |
فوا حزنا وعاودني |
كالخداع |
٢٤٧٢ |
أسعى على مَجدِ |
دَعْداعِ |
١٩٩٩ |
صَدْقٍ ، حسامٍ |
قَرَّاعِ |
٥٤٣٣ |
عليك بأمر |
كراع |
٦١٠٤ |
ألم أظْلِفْ |
بالكُراعِ |
٥٨٠٤ |
بأنَّ الغَدْر في |
بالكُرَاع |
١٠٩٠ |
وما ثوبُ البقاء |
اليراعِ |
٧٣٤٩ |
أَحْللتَ بيتك |
بالأوزاعِ |
٧١٤٧ |
مَرِحَتْ يداها |
صاع |
٣٨٥٣ |
فقد جزتكم |
بالصاعِ |
٣٩٣٣ |
لا نألم القتلَ |
بالصَّاعِ |
٥٩٤٣ |
ومن لا يعتبط |
انقطاع |
٤٣٤٩ |
بين يدَي |
ودُفَّاعِ |
٢٣٥٤ |
مقادير النفوس |
النفاع |
٤٥٦٩ |
وكنت إذا |
وقاعِ |
٧٢٥٠ |
أطوف ما أطوف |
لكاع |
٥٥٦٩ ، ٦١٠٤ |
وإذا أطفت |
الأضلاع |
٦٤٥٩ |
ثم تجلت ولنا |
جُمّاع |
١١٦٣ |
بِدجلة دارهم |
السماع |
٦٩٥١ |
ومويلك زمع |
سماع |
٣١٩٧ |