مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
وَ مجُودٍ قد |
الأعلاقِ |
٢٩٩٠ |
إن تحت |
مِعلاق |
٤٧١٨ |
كبرق بات |
لَمَاق |
٦١٠٩ |
أَمِنْ ترجيعِ |
بالعَناقِ |
٦٥٣٦ |
تتعادى عنه |
فُوَاقُ |
٤٢٩٢ |
أستغفر الله |
أبِقُ |
٧٠٤٨ |
فذلك لم ... |
لا يَتَأبَّقُ |
١٦٣ |
كذلك المرءُ |
طبقُ |
٤٠٥٦ |
وأراك حين |
كمطبق |
٣٦٤٦ |
وحدِّث بأن |
مُنَبَّقِ |
٦٤٧٣ |
قضيت أموراً |
تفتَّقِ |
٦٦١ ، ٥٠٩٤ |
هوايِ مع |
مُوثقُ |
٧٠٦٦ |
إن تُترني |
بحق |
٧٠٥٧ |
إن تَلتْني |
بحقٍّ |
٦١٥٩ |
فإن سرَّكم |
يلحقِ |
٣٢٩٢ |
كغماغم الثيران |
الحدَقُ |
٤٨٩٤ |
هو المدخِلُ |
مسردق |
٣٠٦٨ |
وفي الحلم إدمانٌ |
فاصدقِ |
٢٠٦٤ |
يرى ناصحاً |
حاذق |
١٣٧٨ |
عذقت يزيداً |
عَذْقُ |
٤٤٣٩ |
غول تصدَّى |
الأرق |
٤٥٠٥ |
نحن بنات |
النمارق |
٤٠٨٩ |
منابرنا عن |
والنمارق |
٦٨٥٧ |
ترى القوم |
شبرق |
٣٣٦٤ |
ولو أنّ لقمان الحكيم |
يبرق |
٥٠١ |
شَنئتُ من الإخوانِ |
المُخرَّقِ |
٢١٦٦ |
وارتاز غيري |
الدرقْ |
٣٢٢٧ |
موطنه روضة |
والذُّرقُ |
٥٧٢٨ |