مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
فجلّى كما جلّى |
أزرقُ |
٢٦٤٩ |
لقد زرِقت |
أزرقُ |
٢٧٨٦ |
رَجبِعةُ أسفارٍ |
مُطرِقُ |
٢٤٢٩ |
وإذا الأمور |
مُطَرَّق |
٤٥٩٨ |
فإن تُتْهِمُوا |
أُعْرِقِ |
٧٨٠ ، ٤٤٩٨ |
يعالى عليها |
تُعَرَّق |
٤٥٠٣ |
رضيعي لبانِ |
لا تتفرق |
٢٩٩٦ ، ٤٨١٥ |
أداراً بَحُزْوى |
أو يترقرق |
١٤٢٧ |
كأن أيديهنَّ |
الوَرَق |
٢٨٥٧ |
قَرْواء فيها |
الزورق |
٤٨٠٧ |
فذاك وما أنجى |
مُحْرزقُ |
١٤٢٢ |
فإن كنتُ |
أَمَزَّقِ |
٢٩٩ ، ٢٧٤٨ ، ٦٢٨٩ |
ولقد يروق |
المُرْشقِ |
٢٥٠٩ |
فكفَّ عن |
عشق |
٤٥٤٠ |
ليسوا بهدِّين |
النُّطُق |
٦٨٢٨ |
خروج اللسان |
المنطق |
٥٩٢ |
مشت مشية |
ومنطق |
٦٦٤٣ |
قد عتق |
مُعِقِّ |
٤٣١٢ |
وأنت لما وُلدت |
الأفق |
٤٠١٧ |
ولا المَلِكُ النُّعمَانُ |
ويأفِقُ |
٢٨٨ ، ٥٣١٣ |
وقاتم الأعماق |
الخَفَقْ |
٤٧٥٠ |
يؤاري من القعقاع |
مشقق |
٣٢٨٧ |
وَسْوَسَ يَدْعو |
العَقُقْ |
٣٦٠ ، ٤٢٨٤ |
قُبٌ من التعداء |
كالمقق |
٣٢٧٦ |
وضربت ذا تاجٍ |
المُتَألِّقِ |
٣١٥ |
وأنت امرؤ |
جُوالِقِ |
٥٧٧٠ |
سوداء حالكة |
مُنْبَلق |
٦٣١ |
فَشُبَّت لمقرورين |
والمحلق |
١٥٤٦ |