مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
يا أيها المتحلَّى |
الخلق |
١٩١١ |
إلى صَهوة تحدو |
أخلقُ |
٢١٤٨ |
تلومون في حمقه |
تخلق |
٥٩١ |
شاحي لحيي |
العلقْ |
٥٣٢٨ |
إذا ما علونا ظهر |
مغلق |
٥٦٨ |
يا فارج الهمِّ |
الفلقُ |
٥١٧٠ |
إذا تَتَلاهُنَّ |
الملق |
٣٧٤١ |
وكل خليل |
مِلقْ |
٦٣٧٧ |
ألم تسأل |
سملقُ |
٥٢٨٩ |
له مسائح زور |
ولا رمَقُ |
٦٢٩٦ |
فاعجل بغرب |
أيانقِ |
٦٢٩٢ |
ما كان ضرَّك |
المَحنقُ |
١٦٠٣ |
وتيهاء تودي |
بُخنُقُ |
٤٤٤ |
ويأمر لليحموم |
يَسنقُ |
١٢٨٠ |
أبي الذي |
العُنُق |
١٩٤٠ |
تنشَّطتْهُ كلُّ |
فُنُقْ |
٥٢٦٠ |
فيها خطوط من |
البهق |
٦٤٣ |
والمروَ ذا القداحِ |
مُدَّهق |
٣٩١٨ |
ألمت فحيت |
تزهَقُ |
٢٨٦٢ |
تروح على آل |
تفهق |
٥٢٦٩ |
نفى الذَّمَّ |
تَفْهَقُ |
٩٨٠ |
يا ربَّ مُهر |
أو مغبوقْ |
٢٧٩٨ |
ما تصنع |
العزوق |
٤٥١٥ |
وإن الموت |
النَّشوق |
٦٥٩٩ |
وجاءت الخيل |
الفوقِ |
٤٥٤ |
بمرمرةٍ وأسفله |
شقوق |
٠٠٧ ، ٦٠٢٧ ، ٦٨١٠ |
وسائلة بثعلبة |
العَلوق |
٤٧٢٨ |
فلا تكثروا الذَّمَّ |
بالأموق |
٥٩١ |