مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
يا حبذا جاريةٌ |
في سُكٍّ |
٢٢٤٤ |
ليلةَ حَكٍ |
الأسكّ |
٢٩٢٧ |
تَقتَّلتِ لي |
النواسك |
٥٣٧٥ |
كَدرية كَحَصاة |
والحَسَكُ |
٥٥٨٧ |
أحبك حباً |
المواعك |
٦٣٤٠ |
ثم استمروا |
أَوْرَككُ |
٢٣٣٦ ، ٢٣٤١ |
ولنعم مأوى |
مالك |
٦٨٠٧ |
أما والذي |
وهالك |
٣٣٢٩ |
مصابيح ليست |
الدوالكِ |
٢١٤٤ |
يا حار لا أرمين |
ملك |
٥٢٤ |
يا حارِ لا أُرْمِينْ |
ولا ملكُ |
٢٤٦١ ، ٣٢٥٧ |
فلما رآني |
التّلَمُّكُ |
٦١١٨ |
عَبَنُّ القرا |
الدرانك |
٤٣٣٧ |
يا لها من محنةٍ |
تبوك |
٧١٩ |
ولكن لي عليك |
السُّلُوكِ |
٨٨٧ |
بيربوعٍ وغَلْبٍ |
الملوك |
٨٨٧ |
تطولُ عليَّ |
الملوك |
٨٨٦ |
وذي صِرْوَاحَ |
السُّمُوكِ |
٨٨٦ |
وخُوداً خوتْ |
الأرائكِ |
٢٣٤ |
إذا قال |
العرائك |
٤٤٧٧ |
تفاخرني بقومٍ |
العَتِيك |
٨٨٧ |
ومن ذي |
العتيك |
٤٣٧١ |
ومن ذي عُثْكُلَانَ |
العَتِيكِ |
٨٨٦ |
أولئك خَيْرُ |
شَرِيكِ |
٨٨٧ ، ٤٣٧٢ |
من آل مَراثدٍ |
المليك |
٨٨٦ |
حرف اللام
قد تجاوزْتُها |
الآل |
٦٧٤١ |