مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
ومال أبو |
مُجَحَّلُ |
١٠٠٣ |
إذا ما امرؤٌ |
ولا ذَحْلِ |
٥٣٧٤ |
فقدْ حُمَّتِ |
وأرحلُ |
٤١٩٩ |
نشد غداة الظعن |
والرحل |
١٦٢٤ |
فقمتُ بها أمشِ |
مُرحَّلِ |
٢٤٤٨ |
وقِرْبةِ أقوامٍ |
مُرحَّل |
٢٤٥٣ |
يا أَيُّها العَوْدُ |
تَزحَلُ |
٩١٥ |
لو يقوم الفيل |
وزَحَل |
٢٧٧١ |
في الآلِ |
سَحْلُ |
٢٦٩٧ |
وتَعطو برخْصٍ |
أسْحَلِ |
٤٥٥ ، ٢٩٩٨ ، ٣٠٤٥ ٤١٨٤ ، ٤٢٢٧ |
فباتِ بجمعٍ |
بالسَّحْل |
٢٩٩٢ |
لما وردنَ |
منسحلِ |
٣٠١٢ ، ٦٤٦٤ |
أَبْلانِيَ الدَّهْرُ ... |
الضَّحْلِ |
١٦٦ |
ولا يزال حَوْضُه |
طَحِل |
٤٠٧٥ |
وخدٍّ كَمَتْنِ |
أطْحَلِ |
٤١٣٧ |
فإن نُتجت ... |
الفحل |
٥٤٦٢ |
فادفع بكفكَ |
لا يتحلحل |
١٣٠٨ |
طال قرنُ |
اضمحلَّ |
٤٠٠٢ ، ٥٧٠٠ |
وإذا رأيت الباهشين |
ممحل |
٦٥٠ |
فجاء بمزجٍ |
النحلِ |
٣٩٢٩ ، ٦٢٨٥ |
من البيض |
النحلِ |
٣٩٤٥ |
فتولَّوا فاتراً |
بالوَحَلْ |
٤٠٥٦ |
وأصبح العينُ |
الموْحَلِ |
٧٠٩٠ |
أرَبَّتْ بها |
بالمناخِلِ |
٢٣٦٢ |
كالكوكب الأزهرِ |
ولا بخَلُ |
٢٦٥٠ |
تُريدين أنْ أرضى |
بالبخل |
٤٤١ |
إنَّ الخلافة لم |
مُبَخَّل |
١٠٣٠ |