مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
تَرى الفتيانَ |
الدَّخلُ |
٢٠٤٩ |
ألا أيها الربعُ |
ودخلُ |
٢٠٥١ |
فلقد جمعتُ |
سُخَّلِ |
٧٠٩٩ |
ولقد جمعت |
سُخَّلِ |
٣٠١٨ |
فاسقنيها يا سوادَ |
لخلُّ |
١٦٦٤ |
يهادَين جَمّاء |
المُخلخَلِ |
٦٩٠٠ |
أقول ولم |
النخلِ |
٥٧٩٩ |
ألا ليت شعري |
نَخْلُ |
١١٤٠ |
تتقي الريح |
نخل |
٣٤٥٦ |
ولقد شهدت |
مُنخّلِ |
٥٢٥٤ |
وبالخيل تردي |
الأجَادِلِ |
١٠١١ |
تهال العقاب |
بالأجادلِ |
٢٠٦٤ ، ٢٦٩٢ |
فيا كَرَم السكنِ |
المتبدِّلِ |
٣١٣٣ |
وإذا رميت |
الأجدُلِ |
٧٠٠٥ |
وإذا نضوتَ |
الأجدلِ |
٦٦٣٦ |
إذن لأتاه |
خدل |
٤٧٩٩ |
وتَيْماءَ لم |
بِجَنْدَلِ |
١٨٨ |
كأني لم |
بِعَنْدَلِ |
٤٧٨٨ |
لم يقطعِ |
التَّبَذُّلِ |
٢٨٤٥ |
يا ذا الجود |
بالبذل |
١٧٧٥ |
دعت مَيَّة |
خُذَّلِ |
٤٢٨٠ |
واحذرنْ بعدي |
العَذَل |
٤٤٢٩ |
يقولون إزْلٌ |
إزْلُ |
٢٤٤ |
خليليَّ عُوْجا |
المنازل |
١١٦٩ |
عَفَتْ غير |
المنازلِ |
٤١٢٥ |
وما ضَربٌ بيضاءُ |
ونازلِ |
٣٩٤٥ |
خُصي الفرزدق |
البُزَّلِ |
١٨٢٠ |
ونحن ملكنا |
ولا عُزْل |
٥١٠١ |