مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
والتَّوْرُ فيما |
المرسلُ |
٧٨١ |
مُمْقِرٌ مُرٌ |
كالعسلّ |
٦٣٥٢ |
تعاطيه أحياناً |
المعسّل |
١٢٢٠ |
تَقَاكَ بِكَعْبٍ |
يَعْسِلُ |
٧٥٩ |
فياليلَ إن |
الغِسل |
٤٩٤٨ |
فعادى عداءً |
فيغسلِ |
٢٠٧٢ ، ٤٤٢٣ |
وإذا رُمْتَ |
الكَسِلْ |
٧١٩٠ |
أم لا سبيل إلى ... |
السَّلّسل |
٢٩٢٠ |
وأشبرنيه الهالكي |
سلسل |
٣٣٦٦ |
إذا خاف |
يتسلسل |
٢٩٣٥ |
عسلان الذئب |
فَنَسَل |
٤٥٣٨ ، ٦٥٨٤ |
تسلَّتْ عماياتُ |
بمنسلِ |
٣١٨٧ |
لها حَجَلٌ |
واشِلُ |
١٣٤٣ |
صَتَمُ الكريهةِ |
فشِلُ |
٣٦٦٩ |
يغرق الثعلب |
فَشَلْ |
١٠٢٧ |
فَشلَّت يداه |
نهشل |
١٤٨١ |
أَحْكَمَ الجنثيُّ |
صَلّ |
١١٨١ ، ٣٦٤٢ |
يوماً بأطيب |
الأُصُلُ |
٢٧٤ |
عطَّلت قوس |
ناصل |
٣٤١٦ |
وعطّلْتُ قوسَ |
ناصِل |
٢٨٧١ |
أبونا الذي |
القواصل |
٣٢٧٣ |
فخمةٌ دفراءُ |
كالبصلْ |
٥٤٠ ، ٢٤٠٥ ، ٥٤٥١ |
فخمةً ذخراء |
كالبصل |
٧٣٣ |
كانت مياههم |
والبصلُ |
٥٢٧٤ |
تخرج الأضياح |
العَصَل |
٤٥٦٦ |
كأن السباع |
عُنْصُل |
٤٥٧٤ |
درير كخذروف |
موصَّلِ |
١٧٤٤ ، ١٩٩٦ |
لقد لاح |
الأفاضل |
٣٨٠٣ |