مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
السالكُ الثغرةَ |
الفضُلُ |
١٨٥٥ ، ٦٩٦٧ |
سَرَتْ ما سرت |
فضل |
٤٤٣٠ |
فلست بآتيه |
فضلِ |
٧٠١٧ |
ومستجيبٍ تخال |
الفُضُلُ |
٥٢٠٤ |
كَتُومٌ طِلاعُ |
أفضل |
٤١٤١ |
ولا بلغ المهدون |
أفضلُ |
٥٧٤٠ |
وتُضحي فتيت |
تفضل |
١٩٠٧ |
فجئت وقد |
المتفضلِ |
٥٢١٠ ، ٦٦٣٦ |
أولاد جفنة |
المفضلِ |
٦٢٦٧ |
أزهيرُ إن |
بِهَيضلٍ |
٦٩٤٥ |
وكل ما |
باطل |
٤٣٤١ |
وما قول |
بباطل |
٤٨٠٠ |
ويأشِبُني فيها |
بباطلِ |
٢٦٨ |
فعيناك عيناها |
عاطل |
١٢٣٠ |
ولو أن ما عند |
بناطل |
٦٦٤٤ |
وقفْتُ بربعِ |
الهواطلِ |
٢٣٧١ |
حاسري الدِّيباج |
بطل |
٥٦٧ |
قد تَخْضِبُ |
البطل |
٣٦٠٥ |
إذا الهدفُ |
الخُطلِ |
٣٩٨١ ، ٦٨٨٨ |
هذا لذاك |
الخطل |
١٨٤٩ |
وصبحْتُ أيلةَ |
القسطلُ |
٥٤٨٥ |
وقد تركنا |
القُسطُل |
٥٥٤٣ |
ما روضةٌ من |
الهطِل |
٧٠٤٤ |
وتصكُّ المرو |
الأظلّ |
٤٢١٩ |
كأن خُصْيَيهِ |
حنظل |
١٨١٦ ، ٢٠١١ |
كأن سراته |
حنظل |
٢١٩١ |
كأن على |
حنظل |
٣٧١٨ |
كأنَّ على الكتفين |
حَنظل |
٣٨٠٠ |