مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
كأني غداة |
حنظل |
٦٧٢٨ |
متى تأتي |
وظلٍّ |
٢٢٥٣ |
إني انْصَمْيتُ |
عَلِ |
٣٨٢٩ |
كأن مَحطاً |
عَلُ |
١٢٦١ |
مكرٍّ مفرٍّ |
عل |
٥٠٦١ |
غادرْتُه متجدلاً |
الفراعلْ |
٥١٥٥ |
وكم آملٍ من ذي |
بفاعل |
٥٨٥ |
سِبَحْلٌ له |
وناعلِ |
٦٥٥٥ |
إن تري رأسي |
فاشتعل |
٣٤٩٠ |
ورميت القوم |
بالمفتعل |
٤٥٨١ |
فرميت القوم |
بالمقتعل |
٥٥٨٠ |
هركولة فنق |
منتعل |
١٩١٧ ، ٦٩١٧ |
في فتيةٍ ... |
وينتعلُ |
١١٣ |
وذَمُّوا لنا الدنيا |
ثُعْلُ |
٨٤١ ، ٢٥٢٤ ، ٥٢٧٦ |
تفترُّ عن ذي |
يَثْعَلِ |
٢٦٥ ، ٨٤٦ |
رأيت الفتية |
الرعل |
٢٥٤٢ |
أَبأْنا بقَتلانا |
المُرَعَّل |
٢٥٥٠ |
فتآيا بطريرٍ |
فَسَعَلْ |
١١٢٠ |
أحمد الله |
فعل |
٦٤٤٣ |
جزى الله |
فعل |
٥٥٧٨ |
نزلت على عمرو |
فعل |
٦١٠ |
تداركتُما عَبْساً |
النَّعْلُ |
٨٠٦ ، ٤٤٤٧ |
عجوز عليها |
خَيعل |
٦٨٩٣ |
فاليوم أشرَبْ غير |
واغل |
٤٨٣ ، ٧٢٢٦ |
وهل هندُ |
بغلُ |
٤٨٨٨ ، ٥٤٦٢ |
وَ لَوْ كُنْتُم مِنَّا |
سَافِلِ |
٢٠٠ |
وكل مُلثَّ |
الأسافلِ |
٢٤١٣ |
وإن حديثاً |
مطافل |
٤٨١٨ |