مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
فاعقلي إن |
عقل |
٥٢٥٥ |
ويركُدن بالآصال |
أعقَلُ |
٥٩٣٧ |
لقد عَلِمَ |
مَعْقِلُ |
٢٤٩ |
إذا أبرزَ |
ومَعقِلُ |
٦٣١٥ |
فلما أجزنا |
عقنقل |
٢٢٣ ، ٤٦٦٨ ، ٧٣٢٣ |
ما أُمُّ غُفْرٍ |
الوَقِلُ |
٥٤٤٩ |
تصف السيوف |
الصيقل |
٤٥٨١ |
يمشيْنَ رَهْواً |
تتكلُ |
٢٦٥٨ |
إن الكريم |
يتكل |
٤٧٧٣ |
وَ فَرْعٍ يَزِينُ ... |
المتعثْكِل |
١٣٢ |
لو كنت |
الحُكْلِ |
١٥٣٣ |
رَبتْ ورَبا في |
يَتركَّلُ |
٢٢١٠ ، ٢٦٢٠ |
مَسحٌّ إذا ما السابقاتُ |
المركَّلِ |
٩١١ ، ٢٦١٩ ، ٥٧١٩ |
فما زالت |
أشكل |
٣٥٢٧ |
يغلو بها |
الأشكل |
٣٥١٨ |
جاءت به |
عُكْل |
٤٦٨٩ |
أرى أُمَّنا |
أَفْكَلُ |
٥٢٣٩ |
ازُهيرُ إن |
للكلكل |
٥٧٢١ |
فكيف تُساميني |
حَنْكَلُ |
٤٧٤٧ |
رحلت من |
موكل |
٣٣٩٢ |
وغلبن أبرهة |
مَوْكَلِ |
٧٢٦٧ |
يا بيت عاتكة |
موكل |
٤٥٢٢ |
أتينا أبا |
نؤكل |
٣٥٣٢ |
وقَدْ أغْتَدي .... |
هَيْكَلِ |
١٥٧ ، ٥٦٨٧ ، ٦٩٦١ ، ٧٢٦٦ |
فهرمنا لهما |
بالبللْ |
٣٩٣٣ |
فصَلَقْنَا في |
بالثَّلَل |
٨٠٦ ، ٣٦٩٦ ، ٣٨٠٧ |
بقتلِ بني |
جَلَلْ |
٩٣٥ |