مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
منيباً وقد |
نَذِيْلُ |
٥٥٤٧ |
فألحَفَهُ بالهاديات |
تَزَيَّلِ |
٣٦٢٤ |
وإنَّا من قضاعة |
الجزيل |
٣٥٦٥ |
نَزيلُ القومِ |
النزيلِ |
٦٥٥٩ |
كما خط |
يزيل |
٤٥٣١ |
فرشني بخير |
بعسيل |
٤٥٣٠ |
أَكلَّ يومٍ عرشها |
الغسيل |
٤٩٥٠ |
وأنت على الأدنى |
ومُسيلُ |
٢٤٩٣ |
أيبغي ألُ |
فصيلُ |
٢٥٦٤ |
وما تدري إذا |
الفصيل |
٢٢٩٥ |
إنا محيُّوك |
الطِّيَل |
٤٢٠١ |
كانت مواعيد |
أباطيل |
٤٤٨٥ |
كاد اللُّعاعُ |
حَناطيلُ |
٥٩٦٣ |
يحمي الصِّحاب |
العُيَّلِ |
٤٨٦٠ |
ووادٍ كجوف |
المعيَّل |
١٨٩١ ، ٤٨٤٦ |
وما يدي |
يُعِيْلُ |
٤٨٦٠ |
شمسٌ تحيد |
غِيْلٌ |
٥٠٤٠ |
فمثلك حبلى |
مُغْيِلِ |
٥٠٤٩ |
ومُبَرّأً من |
مُغْيِلِ |
٥٠٤٩ |
ومُبرّأٌ من كلِّ |
مُغيلِ |
٤٨٩٩ |
أسدُ أضبطُ |
وغيلِ |
٣٩١٩ ، ٤٠٩٣ |
بني ربِّ |
لِفِيلِ |
٥٢٨٦ |
أراني إذا |
ثقيلُ |
٣٤٢ |
وأني إذا مالصبحُ |
ثقيلُ |
٢٦٧٧ |
فخَرَّ على |
صَقِيلُ |
٣٠٧ |
وخرَّ على الألاءة |
صقيلُ |
١٤٣٧ |
يريدُ الرمحُ |
عقيل |
٢٦٨٥ |
ألم تعلمي أنْ |
وعقيلُ |
٢٦٧٧ |