مطلع البيت |
القافية |
الصفحة |
أَبىَ الصَّبْرَ ... |
ومَقِيلُ |
١٥٩ |
أبى الصبرُ إني |
ومقيلُ |
٢٦٧٧ |
لعمرك إنَّ قُرْص |
الأكيل |
٢٩٧ ، ١٤٥٨ |
ما الأزد إلا |
وبكيلُ |
٦٢٨٦ |
وقُولا لَهَا ... |
ألِيلُ |
١٤٢ |
تذبُّ ضيفاً |
زهاليل |
٣٤٨٣ |
ألا ليت شعري |
جَلِيلُ |
٩٤٨ |
وكم من حميمٍ |
جليل |
١٢٧٤ |
وأن لساء المرء |
لدليلُ |
١٤٦٤ |
وأعلم علماً |
ذليلُ |
١٤٦٤ |
كمشي الأقبل |
عفشليل |
٤٦٣٢ |
قد عَلِمتْ |
خَنْشَليلُ |
١٨٠٩ |
كان أبو |
ظليل |
٤٤٤٧ |
فَغُودِرَ ثاوياً |
فَلِيْلُ |
٢٢٥٥ |
لنا جبلٌ |
كليل |
٥٧٢٠ |
فظلَّ يُرَاعي الشمس |
خميل |
٥٤٩ |
ومطويَّةُ الأقْرابِ |
فَذَميْلُ |
٢٩٥٦ ، ٥٤٢٥ |
أرَاني ولا |
مُنِيلِ |
٣٥٩ |
فذاحت بالوتائر |
تهيلُ |
٢٣١٤ |
وذات اسمين |
الحويلِ |
١٦٢٣ |
وإن سيادة |
طويلُ |
٣٧٤٥ |
بكتْ عيني وحقَّ |
العويل |
٦٠٥ |
وعَركْتهم بالخيل |
عويلُ |
٢٤٧٥ |
حرف الميم
فوارس ليسوا |
شبام |
٣٣٦٢ |
جَزى اللهُ |
أثام |
١٧٧ |
فللكُبراء أكلٌ |
واقتثام |
٥٣٧٩ |