فنداك قام لك الفخار به |
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إنّ الفخار دعامه الكرم |
وجميل خلقك دان فيه لك |
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العرب الكماة الصّيد والعجم |
وعظيم حلمك قد بلغت به |
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ما ليس يبلغ نعته الكلم |
ما هزّت الأيّام ركنك في |
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ما فيه ركن الطود ينهدم |
هبّت عليك زعازع فغدت |
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منها بحار البغي تلتطم |
لكنّما قابلت عاصفها |
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برزين حلم زانه الحلم |
هذا تراثك من نبيّ هدى |
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تجلى بنور جبينه الظلم |
ووصيّه الزاكي وآلهما |
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أسمى الورى وسواهم الخدم |
فاهنأ بأنّك يا وليّهم |
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ومطيعهم منهم ونجلهم |
فهم الأسود وأنت شبلهم |
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وهم الأصول وأنت فرعهم |
وتبعتهم في كلّ مكرمة |
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لتنال يوم الفصل وصلهم |
فغدوت ربّ الفخر منفردا |
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وندى يديك وإنّه قسم |
قسم الإله لك العلاء رضا |
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دون الورى إنّ العلى قسم |
أهدي إليك سلام ذي كلف |
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عاني الحشاشة شفّه الألم |
ما غرّدت بنت الأراك وما |
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سقت الورى من كفّك الدّيم |
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وله مؤرّخا عام ولادة عبد الأمير بن الشيخ محمّد رضا الخزاعي :
بربع العزّ عندك روض مجدك |
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يغرّد في هناك ونجح قصدك |
وينشر فيه أعلام التّهاني |
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وينشر لؤلؤ البشرى بجهدك |
بمولود لذاتك قلت : أرّخ |
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( تصوّر نوره من بدر مجدك ) |