نفس له عزيزة |
|
أنفس نفس لأبي |
كانت كما تهوى العلى |
|
مقرّها في الشّهب |
قد أنجبته عصبة |
|
حلّت بأعلى منصب |
لمّا تنادت للعلى |
|
حوت جميع الرّتب |
علما وحلما ، عفّة |
|
عفوا بيوم الغضب |
فضلا سخاء ورعا |
|
حيا كمال الأدب |
ما السبب الذي به |
|
استحقّ سوء العتب |
وليس بالجاني الذي |
|
استوجب ما لم يجب |
لم يجن غير إنّه |
|
أجنّ حبّ النّجب |
قلوتم متيّما |
|
قال : هواكم مذهبي |
وملّتي حبّكم |
|
وإن قطعتم سببي |
ولم يزل ديني الهوى |
|
وعنه لم أنقلب |
حتّى أوارى قبلكم |
|
تحت صفيح النّوب |
ويدفنوني دونكم |
|
فديتكم في التّرب |
وللحساب ينشرو |
|
ن كلّ جسم ترب |
وللجواب يسألو |
|
ني عند نشر الكتب |
فأفصح القول الذي |
|
لقيت منه وصبي |
مناديا فيه بما |
|
من قاله لم يخب |
آل محمّد هوي |
|
ت حسبنا ذا الأدب |
منهم وفيهم قد طلب |
|
ت ولقاهم مطلبي |
طوبى لمن أحبّهم |
|
وهي أعزّ الرّتب |