ودان في ولاهم |
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وعنهم لم يرغب |
أنّى وفوا لحبّه |
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وعدا ووفّوا أربي |
فإنّني على الإبا |
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أفدي وفاهم بأبي |
داموا ودام ودّهم |
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ما دام عمر الحقب |
وما زهت زهر الرّبى |
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تحت سقيط الحبب |
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وكتب في صدر رسالة :
كتابي قد تضمّن منك ذكرا |
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يحلّي فيه ناظره نشيده |
إذا نشر الملا ما فيه يطوي |
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ويملي من مزاياك العديده |
ذكا فيه النديّ كأنّ فيه |
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غدت تجني مساعيك الحميده |
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وكتب في صدر كتاب :
سلام ما لمى شفتي غرير |
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ترشّفه الذي فيه شفاه |
يبيت مسهّدا سكران صاح |
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حليف الحزن تيّمه هواه |
رمته يد النّوى عنه فأمسى |
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يكابد ما تحمّل في نواه |
بكاه لجوده بالصدّ حتّى |
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جرت في صوب أدمعه دماه |
غريقا في بحور الهمّ أضحى |
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ونار لظى الصّبابة في حشاه |
بأطيب منه نشرا حين يهدي |
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وينشر من فم الذكرى شذاه |
ولا رشف الحميّا حين تجنى |
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بأشهى للنّدامى من جناه |
ولا نقر المثاني حين تشدو |
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بأحلى للخواطر من ثناه |
ولا زهر الدّراري حين تبدو |
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بأزهى للنواظر من سناه |