إلى علياك يهدى من معنّى |
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نحيل الجسم أنحله عناه |
فيا ملك الفواضل أنت بحر |
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وأين البدر من سامي علاه؟! |
به العليا تباهي كلّ مولى |
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فهل من رام مفخره حكاه؟! |
وكان إلى الفواضل خير مأوى |
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فهل ساوى فضائله سواه؟! |
جواد ما جرى في الجود إلّا |
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وقال الناس ما أقصى مداه! |
همام ما يهمّ بغير حزم |
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ولا يهمي الحيا كحيا حباه |
فتى العليا الذي خطبته قدما |
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فأمهرها بما ملكت يداه |
فيا دامت مساعيه ودامت |
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له البشرى لتبلغه مناه |
ولا زال الفخار به ينادي |
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وفي إظهار علياه نداه |
وله مؤرّخا بناء دار لأحد أصدقائه :
شيّد بيتا للنّدى |
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ندب سما أنداده |
بيتا سما هام السما |
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لمّا غدا عماده |
أبو الحسنين من به |
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نال الهدى مراده |
إنّ الفخار جملة |
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ألقى له قياده |
فصحّ في تاريخه |
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( لفخره قد شاده ) |
١٣٢٩
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وله يهنّئ الشيخ جواد بن الشيخ صافي الطّريحي بقرانه سنة ١٣٢١ ، وهو من أوائل شعره :
غادة دارت رحاها |
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بفؤادي من شجاها |
تخجل الشمس إذا ما |
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بزغت رأد ضحاها |