زارنا حتى إذا ما |
|
سرّنا بالقرب زالا ١٩٢ |
بدت قمرا ، ومالت خوط بان |
|
وفاحت عنبرا ، ورنت غزالا ١٨٩ ، ٢٧٢ |
فاشرب هنيئا عليك التاج مرتفقا |
|
في رأس غمدان دارا منك محلالا ١٣٧ |
أنت مثل الورد لونا |
|
ونسيما وملالا ١٩٢ |
ولم أمدح لأرضيه بشعري |
|
لئيما أن يكون أصاب مالا ٩٢ |
ونكرم جارنا ما دام فينا |
|
ونتبعه الكرامة حيث مالا ٢٧٦ |
يا شبيه البدر حسنا |
|
وضياء ومنالا ١٩٢ |
ولأعقب النّجم المردّ بديمة |
|
ولعاد ذاك الطّلّ جودا وابلا ١٦٧ |
لولا مفارقة الأحباب ما وجدت |
|
لها المنايا إلى أرواحنا سبلا ٣٠٦ |
قد طلبنا فلم نجد لك في السّؤ |
|
دد والمجد والمكارم مثلا ٩٢ |
إن صحّ علم النجوم ؛ كان لكم |
|
حقا إذا ما سواكم انتحلا ٢٢٩ |
شافهتم البدر بالسؤال عن ال |
|
حقا إذا ما سواكم انتحلا ٢٢٩ |
يا خير من يركب المطيّ ، ولا |
|
أمر إلى أن بلغتم زحلا ٢٢٩ |
يا آل نوبخت لا عدمتكم |
|
يشرب كأسا بكفّ من بخلا ٢١٦ ، ٢٧٥ |
يا آل نوبخت لا عدمتكم |
|
ولا تبدّلت بعدكم بدلا ٢٢٩ |
كم عالم فيكم وليس بأن |
|
قاسى ولكن بأن رقى فعلا! ٢٢٩ |
إن الهلال إذا رأيت نموّه |
|
أيقنت أن سيصير بدرا كاملا ١٦٧ |
أعلاكم في السماء مجدكم |
|
فلستم تجهلون ما جهلا ٢٢٩ |
ي الخدّ إن عزم الخليط رحيلا |
|
مطر تزيد به الخدود محولا ٣٢٠ |
فلن تستطيع إليها الصّعود |
|
ولن تستطيع إليك النزولا ٢٣٠ |
ولقد عرفت ، وما عرفت حقيقة |
|
ولقد جهلت ، وما جهلت خمولا ٢٥٧ |
أعدى الزّمان سخاؤه ، فسخا به |
|
ولقد يكون به الزمان بخيلا ٣٠٥ |
لو حار مرتاد المنيّة ؛ لم يجد |
|
إلا الفراق على النّفوس دليلا ٣٠٦ |
هي الشمس مسكنها في السماء |
|
فعزّ الفؤاد عزاء جميلا ٢٣٠ |