رآهم آدم أشباح
نور |
|
بساق العرش
مشرقة ضياءا |
هناك بهم توسل
حين أخطأ |
|
فكفّر ربه عنه
الخطاءا |
فمنهم ذلك الطهر
المرجى |
|
عليّ اذ نُنيط
به الرجاءا |
امير المؤمنين
أبو تراب |
|
ومن بترابه نلفي
الشفاءا |
خليفة ربنا في
الأرض حقا |
|
له فرض الخلافة
والولاءا |
وعلّمه القضايا
والبلايا |
|
وفهّمه الحكومة
والقضاءا |
وسمّاه عليا في
المثاني |
|
حكيما كي يتم له
العلاءا |
وأعطاه أزمة كل
شيء |
|
فليس يخاف من
شيء اباءا |
فأبدع معجزات
ليس تخفى |
|
وهل للشمس قط
ترى خفاءا |
وشبهه ابن مريم
في مثال |
|
أراد به امتحانا
وابتلاءا |
فواضل فضله لو
عددوها |
|
اذن ملأت
بكثرتها الفضاءا |
إمام ما انحنى
للآت يوما |
|
ولم يعكف على
العزى انحناءا |
وواخاه النبي
فلم يخنه |
|
كمن قد خان بل
حفظ الاخاءا |
وعاهده فلم يغدر
ولكن |
|
وفاه ومثله حفظ
الوفاءا |
وكم عرضت له
الدنيا حضورا |
|
فجاد بها
لعافيها سخاءا |
شفى بالعلم
سائله وأغنى |
|
ببذل المال
سائله عطاءا |
هو الصدّيق اول
مَن تزكى |
|
وصدّق احمد
الهادي ابتداءا |
هو الفاروق إن
هم أنصفوه |
|
به عرفوا
السعادة والشقاءا |
صلوة الله دائمة
عليه |
|
ورحمته صباحا أو
مساءا |
فقد ابقت مودته
بقلبي |
|
نوازع تستطير بي
ارتقاءا |
ولي في كربلاء
غليل كرب |
|
يواصل ذلك الكرب
البلاءا |
غداة غدا ابن
سعد مستعداً |
|
لقتل السبط ظلما
واعتداءا |
فاصبح ظاميا مع
ناصريه |
|
فكل منهم يشكو
الظماءا |
ولم يالوا
مواساة وبذلا |
|
بانفسهم لسيدهم
فداءا |
الى أن جُدّلوا
عطشا فنالوا |
|
من الله المثوبة
والجزاءا |