فجوزيتم لبغضكم
علياً |
|
عذاب الخلد في
الدرك القصي |
سأهدي للأئمة من
سلامي |
|
وغرّ مدئحي أزكى
هدي |
سلاماً اتبع
الوسميَّ منه |
|
على تلك المشاهد
بالولي |
واكسو عاتق
الأيام منها |
|
حبائر كالرداء
العبقري |
حسانا لا اريد
بهنَّ إلا |
|
مساءة كل باغٍ
خارجي |
يضوع لها اذا
نشرت أريج |
|
كنشر لطائم
المسك الذكي |
كأنفاس النسيم
سرى بليلا |
|
بهن ذوائب الورد
الجني |
لطيبة والبقيع
وكربلاء |
|
وسامراء تغدو
والغري |
وزوراء العراق
وأرض طوس |
|
سقاها الغيث من
بلد قصي |
فحيا الله من
وارته تلك الـ |
|
ـقباب البيض من
حبر نقي |
وأسبل صوب رحمته
دراكا |
|
عليها بالغدوِّ
وبالعشي |
فذخري للمعاد
ولاء قوم |
|
بهم عرف السعيد
من الشقي |
كفاني علمهم أني
معاد |
|
عدوهم موالٍ للولي |