فبكلّ أرض من ثنائك شائع |
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عبق كما ولج الرّياض نسيم |
يجري فلا يخفى على مستنشق |
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لو أنّه عن أذنه مكتوم |
يطوى فينشره الثناء لطيبه |
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ذكر الكريم بعنبر مختوم |
صحبتك خالدة الحياة وكل ما |
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تجتاز بابك جنّة ونعيم |
في ظل عزّ دائم وكرامة |
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وفناء دارك بالوفود زحيم |
من كل ذي تاج تعلّة قصده |
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مرآك والإلمام والتسليم |
وقوله من أخرى في المذكور :
ألأجرع تحتلّه هند |
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يندى النسيم ويأرج الرّند |
ويطيب واديه بموردها |
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حتى ادّعى في مائه الورد |
نعم الخليط نضجت جانحتي |
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بحديثه لو يبرد الوجد |
يحييك من فيه بعاطرة |
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لو فاه عنها المسك لم يعد |
يا سعد قد طاب الحديث فزد |
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منه أخا نجواك يا سعد |
فلقد تجدّد لي الغرام وإن |
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بلي الهوى وتقادم العهد |
ذكر يمرّ على الفؤاد كما |
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يوحي إليك بسقطه الزّند |
وإذا خلوت بها تمثّل لي |
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ذاك الزمان وعيشه الرّغد |
ولقاء جيرتنا غداتئذ |
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متيسّر ومرامهم قصد |
وخيامهم أيام مضربها |
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سقط الّلوى وكثيبه الفرد |
أعدو بها طورا وربّتما |
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رعت الفلا والليل مسوّد |
لكواكب هي في تراكيبها |
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حلق الدروع يضمّها السّرد |
من كلّ أروع حشوة مغفره |
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وجه أغرّ وفاحم جعد |
ذكر الوزير الوقّشيّ لهم |
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فأثارهم للقائه الودّ |
مترقّبين حلول ساحته |
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حتى كأنّ لقاءه الخلد |
قد رنّحتهم من شمائله |
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ذكر كما يتضوّع النّدّ |
نعم الحديث الحلو تملكه ال |
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ركبان حيث رمى بها الوخد |
يا صاحبيّ أخبره عجب |
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لكما على ظمإ به ورد |
أم ذكره تتعلّلان به |
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إذ ليس منه لذي فم بدّ |
شفتيكما فالنّحل جاثمة |
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مما يسيل عليهما الشّهد |
رجل إذا عرض الرجال له |
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كثر العديد وأعوز النّدّ |
من معشر نجم المقال بهم |
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زهر كما يتساوق العقد |