وكم بالنّقا من روضة مرجحنّة |
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تضمّخ أنفاس الرياح بها نشرا |
ومن نطفة زرقاء تلعب بالصّدا |
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إذا ما ثنى ظلّ مدار بها سمرا |
ومنها :
وبرد نسيم أنثنى عند ذكره |
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على زفرات تصدع الكبد الحرّا |
وإنّ لبانات تضمّنها الحشا |
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قليل لديها أن تضيق بها صدرا |
وقوله من مرثية :
رميّ الموت إن السهم صابا |
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ومن يدمن على غرض أصابا |
إلام أشبّ من نيران قلبي |
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عليك لكل قافية شهابا |
وقد ودّعت قبلك كلّ سفر |
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ولكن غاب حينا ثم آبا |
وأهيج ما أكون لك ادّكارا |
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إذا ما النجم صوّب ثم غابا |
وقوله : [الخفيف]
لا تسل بعد قتل يوسف عنّي |
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ففؤادي مثلّم كسلاحه |
لو تأمّلت مقلتي يوم أودى |
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خلتني باكيا ببعض جراحه |
وقوله : [الكامل]
يا وردة جادت بها يد متحف |
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فهمى لها دمعي وهاج تأسّفي |
حمراء عاطرة النسيم كأنّها |
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من خدّ مقتبل الشبيبة مترف |
عرضت تذكّرني دما من صاحب |
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شربت به الدنيا سلافة قرقف |
فنشقتها شغفا وقلت لصاحبي |
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هي ما تمجّ الأرض من دم يوسف |
وقوله من قصيدة : [الرمل]
أيّها الآمل خيمات النّقا |
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خف على قلبك تلك الحدقا |
إنّ سربا حشي الخيم به |
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ربّما غرّك حتى ترمقا |
لا تثرها فتنة من ربرب |
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ترعد الأسد لديه فرقا |
وانج عنها لحظة سهميّة |
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طال ما بلّت ردائي علقا |
وإذا قيل نجا الركب فقل |
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كيفما سالم تلك الطّرقا |
يا رماة الحيّ موهوب لكم |
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ما سفكتم من دمي يوم النّقا |
ما تعمّدتم ولكن سبب |
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قرّب الحين وأمر سبقا |
والتفاتات تلقّت عرضا |
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مقتل الصّبّ فخلّته لقا |