لم يدر أين يريح بدن ركابه |
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فكأنما المأوى عليه محرم (١) (٢) |
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(١) انظر ديوان السيد جعفر الحلي رحمه الله.
(٢)
(حدي)
يوم الذي راعي الشيم |
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انوه يشد الراحله |
جاب المحامل للحرم |
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كل فرد وجّه فرد حيد اله |
طب لعد زينب مبتسم |
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عباس راعي المرجله |
گاللها يا ضنوة علي |
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گومي نريد لكربله |
گالتله خويه محملي |
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يا هو الذي يتچفّله |
گاللها عيناچ ابشري |
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امرچ نود نتمثّله |
طلعن اوعباس ايحدي |
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والزمل ضج اهلاهله |
كل ساع وعباس ونزل |
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محمل الحرّه ايعدّله |
صد له لحسين وناشده |
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شنهي نزلتك بالفله |
گله يخويه نزلتي |
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تدري بختنه امدلّله |
ما تحمل الذل والهظم |
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نشات على العز والعله |
ريتك ياعباس اتحضر |
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يوم اطلعت من كربله |
سترت وجهها اچفوفها |
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والدمعه على الخد سايله |
(نصاري)
آنه بگيت امحيّره واصفگ باليدين |
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لا عباس يبرالي ولا احسين |
سضربوني من ابچي وتدمع العين |
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وتبگه عبرتي ابصدري تكسّر |
(تخميس)
هذه زينت ومن قبل كانت |
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بفنا دارها تحطُّ الرحال |
أضحت اليوم واليتامى عليها |
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يالقوم تصدّق والأنذال |