لا عدا الغيث
رباها فلكم |
|
أنجز الدهر لنا
فيها وعودا |
ولكم فيها قضينا
وطرا |
|
وسحبنا للهوى
فيها برودا |
يا رعى الله
الدمى كم غادرت |
|
من عميد واله
القلب عميدا |
ولكم قاد هواها
سيدا |
|
فغدا يسعى على
الرغم مسودا |
وبنفسي غادة
مهما رنت |
|
أخجلت عين المها
عينا وجيدا |
ليس بدعا ان أكن
عبدا لها |
|
فلها الاحرار
تنصاع عهيدا |
جرحت ألحاظها
الاحشاء مذ |
|
جرحت ألحاظنا
منها الخدودا |
رصدت كنز لئالي
ثغرها |
|
بأفاع أرسلتهن
جعودا |
وحمت ورد لماها
بظبى |
|
من لحاظ تورد
الحتف الاسودا |
يا مهاة بين سلع
والنقى |
|
سلبت رشدي وقد
كنت رشيدا |
ولقتلي عقدت
تيها على |
|
قدها اللدن من
الشعر بنودا |
ما طبتني البيض
لولاها وان |
|
كن عينا قاصرات
الطرف غيدا (١) |
يا رعاها الله من
غادرة |
|
جحدت ودي ولم
ترع العهودا |
منعت طرفي الكرى
من بعد ما |
|
كان من وجنتها
يجني الورودا |
لو ترى يوم
تناءت أدمعي |
|
لرأيت الدر في
الخد نضيدا |
ما الذي ضرك لو
عدت فتى |
|
عد أيام اللقا
يا مي عيدا |
وتعطفت على ذي
أرق |
|
لم تذق بعدك
عيناه الهجودا |
كم حسود فيك قد
أرغمته |
|
فلماذا في أشمت
الحسودا |
نظمت ما نثرته
أدمعي |
|
من لئال
كثناياها عقودا |
جدت بالنفس وضنت
باللقا |
|
فبفيض الدمع يا
عيني جودا |
يا نزولا بزرود
وهم |
|
بحمى القلب وان
حلوا زرودا |
قد مضت بيضا
ليالينا بكم |
|
فغدت بعدكم
الايام سودا |
__________________
١ ـ أطباه بالتشديد حرفه ودعاه.