(تزاور) [١٨ ـ الكهف : ١٧] : تمايل ، ولهذا قيل للكذب : زور ؛ لأنه أميل عن الحقّ.
(تقرضهم) [١٨ ـ الكهف : ١٧] : تخلّفهم وتجاوزهم (١).
(تعد عيناك عنهم) (٢) [١٨ ـ الكهف : ٢٨] : أي لا تجاوزهم.
(تبيد) (٢) [١٨ ـ الكهف : ٣٥] : تهلك.
(/ تذروه [الرياح]) (٣) [١٨ ـ الكهف : ٤٥] : تطيّره وتفرّقه.
(تخذت) (٤) [١٨ ـ الكهف : ٧٧] : بمعنى اتّخذت.
(تنفد) [١٨ ـ الكهف : ١٠٩] : أي تفنى.
(تؤزّهم أزّا) [١٩ ـ مريم : ٨٣] : أي تزعجهم إزعاجا (٥).
(تجهر بالقول) [٢٠ ـ طه : ٧] : أي ترفع صوتك.
(تردى) [٢٠ ـ طه : ١٦] : تهلك.
(تنيا) [٢٠ ـ طه : ٤٢] : تفترا (٦).
__________________
(١) وقال مجاهد في تفسيره ١ / ٣٧٤ : تتركهم.
(٢) هذه الكلمة زيادة من (ب).
(٣) سقطت من (ب).
(٤) قال الفراء في المعاني ٢ / ١٥٦ : وهي قراءة مجاهد ، واستشهد بقول البناني :
* تخذها سرّيّة تقعّده*
وأصلها اتّخذ (افتعل). وانظر مجاز القرآن ١ / ٤١١.
(٥) وقال أبو عبيدة في المجاز ٢ / ١١ : تهيّجهم وتغويهم ، وتكررت هذه الكلمة في (ب) هنا ، وعقب كلمة (ترجون لله وقارا) [٧١ ـ نوح : ١٣] وجاء تفسيرها هناك كالتالي : تهيّجهم وتغريهم بالمعاصي.
(٦) قال اليزيدي في غريبه : ٢٤٦ ونيت في الأمر إذا فترت عنه.