اى خدا چون شام شد صبح وصال |
|
زندگانى بىرخ اکبر محال |
امّ ليلى زين جهان سير است سير |
|
زود آيد گر اجل دير است دير |
نور عينم از نظر مفقود شد |
|
يا رب اين گيسو غبار آلود شد |
برد گردون در ميان لشکرش |
|
تا از آن لشکر چه آيد بر سرش |
المباراة بالعربيّة أو تقريب معنى الشعر :
ولمّا تجلّى ضياء العيون |
|
عليّ وقرّة عين الحسين |
ذبيح الإله على مذبح |
|
له اختار آبائه الأوّلين |
وقد فقدت أُمّه زوجها |
|
ولم يبق إلّا الأسى والأنين |
وطارت شعاعاً بها مثلما |
|
تذبذبُ طرّته في الجبين |
ولم تشكُ إلّا إلى ربّها |
|
لينقذه من عدوّ لعين |
إلهي لوالهة في ابنها |
|
إذا كان للصخر قلب يلين |
بذلت حياتي حتّى استوى |
|
ونال من العمر هذي السنين |
عقدت من القلب آماله |
|
عليه فكيف أراه طعين |
وقلت سأنعم في ظلّه |
|
بشيخوختي في المكان المكين |
وغاب ضيائي من بعده |
|
غياب ذكاء من الخافقين |
وكان لي الروح في هيكلي |
|
فهاهي تذهب في الذاهبين |
إذا فارقت جسداً روحه |
|
غدا هيكلاً من تراب وطين |
وكان سراجي في ليلتي |
|
وعكازتي في الصباح المبين |
أيذهب طعمة أسيافهم |
|
وينهشه كلّ وغد مهين |
فيا غصّة ليس يُرجى لها |
|
شفاء سوى أرحم الراحمين |
إلهي لقد صار وجه النهار |
|
عليّ ظلاما كليل يرين |
محال حياتي من بعده |
|
فلا عيش إلّا بماء معين |