ما رأت الدنيا أخاً مثله |
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به على النصر أخوه اعتمد |
قد ورد الماء وما ذاقه |
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والقلب منه بظماه اتّقد |
حتّى هوت كفّاه فوق الثرى |
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وانفضخت هامته بالعمد |
وما رأينا ساقياً مثله |
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للنّاس إلّا أنّه ما ورد |
شعر إمام جمعة كاشمر
الحاج علي المتلخّص بمشكاة المحبّة
سردار بى سپاه علمدار بى حشم |
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بوالفضل بوالمکارم وذو الجود والکرم |
کرد آفرين بهمّت او همّت آفرين |
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همّت نگر که تشنه لب آمد برون ز يم |
بر دوش ابر رحمت بر دست تيغ برق |
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چون رعد در خروش و روان شد سوى حرم |
کردند ازدحام پى دفع آنجناب |
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او را نبود باک از آن خيل مزدحم |
از صولتش گداخت دل و زهره کرد آب |
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شير ژيان پيل دمان اَژدر دژم |
بر دفع دشمنان نه بشمشيرش احتياج |
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افکند گر ز قهر بر ابروى خويش خم |
آمد بروى ز ابفرات محيط جود |
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افراشت بر فتوت مردانگى علم |