ويبخل علينا |
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بردّ السّلام |
أدخلت يا قلبي |
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روحك في زحام |
سلامتك عندي |
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هي شيء عجيب(١) |
وكيف بالله يسلم |
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من هو في لهيب(٢) |
دور
بالله يا حبيبي |
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أترك ذا النّفار(٣) |
واعمد أن نطيب |
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في هذا النّهار |
واخرج معي للوادي |
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لشرب العقار(٤) |
نتمّم نهارنا |
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في لذّة وطيب |
في الأرحا وإلّا |
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في المرج الخصيب |
دور
أو عند النواعير |
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والروض الشريق |
أو قصر الرصافة |
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أو وادي العقيق |
رحيق والله دونك |
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هو عندي الحريق(٥) |
وفي حبّك أمسيت |
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في أهلي غريب |
وما الموت عندي |
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إلّا حين تغيب(٦) |
دور
اتّكل على الله |
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وكن قط جسور(٧) |
وإن رإيت فضولي |
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فقل أي تمور(٨) |
كمش عنيّ وجهك |
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فإن رآك نفور(٩) |
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(١) في ب : هي شيء عجيب.
(٢) وكف بالله يسلم.
(٣) في ب واعمل أن نطيبو.
(٤) العقار : الخمرة.
(٥) في ب : رحق والله دونك ، وفي ج : حرق والله دونك.
(٦) في ب : حن تغيب.
(٧) في ب : فظ جسور.
(٨) في ب : وإن ريت فضولي فقل إين تمور.
(٩) في ب : كمش عنّو وجهك فإن راك نفور.