وجنّته جنات عدن وفي لظى |
|
فؤادي ومالي من ذنوب تعذب |
ويعذلني العذال فيه وإنني |
|
لأعصي عليه من يلوم ويعتب |
لقد جهلوا هل عن حياتي أنثني |
|
إذا نمّقوا أقوالهم وتألبوا |
يقولون لي قد صار ذكرك مخلقا |
|
وأصبح كل في هواه يؤنب |
وعرضك مبذول وعقلك تالف |
|
وجسمك مسلوب ومالك ينهب |
فقلت لهم عرضي وعقلي والعلا |
|
وفخري لا أرضى بها حين يغضب |
جنون أبى أن لا يلين لعازم |
|
بسحر بآيات الرّقى ليس يذهب |
فقالوا ألا قد خان عهدك قلت لم |
|
يخن من إذا قربته يتقرب |
وكم دونه من صارم ومثقف |
|
فيا من رأى بدرا بهذين يحجب(١) |
على أنه يستسهل الصعب عندما |
|
يزور فلا يجدي حمى وترقّب |
وكم حيلة تترى (٢) على إثر حالة |
|
وذو الود من يحتال أو يتسبب |
على أنه لو خان عهدي لم أزل |
|
له راعيا ، والرعي للصب أوجب |
فأين زمان لم يخني ساعة |
|
به وهو منّي في التنعم أرغب |
ولا فيه من بخل ولا بي قناعة |
|
كلانا بلذات التواصل معجب |
ويا رب يوم لا أقوم بشكره |
|
على أنني ما زلت أثني وأطنب |
على نهر شنّيل وللقضب حولنا |
|
منابر ما زالت بها الطير تخطب |
وقد قرعت منه سبائك فضة |
|
خلال رياض بالأصيل تذهّب(٣) |
شربنا عليها قهوة ذهبية |
|
غدت تشرب الألباب أيان تشرب |
كأن ياسمينا وسط ورد تفتحت |
|
أزاهره أيان في الكأس تسكب |
إذا ما شربناها لنيل مسرة |
|
تبسّم عن در لها فتقطب(٥) |
__________________
(١) المثقف : الرمح.
(٢) تترى : تتتابع.
(٣) السبائك : جمع سبيكة : كتلة من الذهب أو الفضة مصبوبة على شكل معين. والأصيل : الوقت قبل الغروب. وتذهّب : تلوّن بلون الذّهب.
(٤) القهوة : الخمر.
(٥) تقطب : تعبس.