ربّ السماك وربّ الشمس طالعة |
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وكلّ أزهر في الظلماء خرّاج |
وقوله :
والتاج تقوى الله لا ما رصّعوا |
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ليكون زينا للأمير التائج |
وقوله :
عجبي للطبيب يلحد في الخا |
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لق من بعد درسه التشريحا |
وقوله :
تنسّكت بعد الأربعين ضرورة |
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ولم يبق إلا أن تقوم الصوارخ |
فكيف ترجي أن تثاب وإنما |
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يرى الناس فضل النسك والمرء شارخ |
وقوله :
مولاك مولاك الذي ماله |
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ندّ وخاب الكافر الجاحد |
آمن به والنفس ترقى وإن |
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لم يبق إلا نفس واحد |
ترجو بذاك العفو منه إذا |
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ألحدت ثم انصرف اللاحد |
وقوله :
وإن لحق الإسلام خطب يغضّه |
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فما وجدت مثلا له نفس واجد |
وإن أعظموا كيوان عظّمت واحدا |
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يكون له كيوان أول ساجد |
وقوله :
إذا كنت من فرط السفاه معطّلا |
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فيا جاحد اشهد أنني غير جاحد |
أخاف من الله العقوبة آجلا |
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وأزعم أن الأمر في يد واحد |
فإني رأيت الملحدين تعودهم |
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نداماتهم عند الأكفّ اللواحد |
وقوله :
تعالى الله كم ملك مهيب |
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تبدّل بعد قصر ضيق لحد |
أقرّ بأن لي ربّا قديرا |
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ولا ألقى بدائعه بجحد |